एक बुजुर्ग हैं सूरत सिंह। ये घटना 78 साल के सूरत सिंह के 60 सालों की कहानी है। इस बुजुर्ग ने जो किया और अब इसका परिवार जो इसके साथ कर रहा है, वो कितना सही है या कितना गलत? इसका हिसाब आप पूरी कहानी जानने के बाद खुद लगा लें। लेकिन कोरोना काल में जो इस बुजुर्ग ने किया है, उससे तो एक बात साबित हो जाती है कि आप दुनिया के किसी भी कोने में पहुंच जाएं। आखिर में आपको अपनी मिट्टी और अपने घर आना ही पड़ता है।
इस तस्वीर को जरा ध्यान से देखिये। इस तस्वीर में दिख रहा ये बुजुर्ग सूरत सिंह है। सूरत सिंह के चेहरे पर उम्मीद है, पछतावा है और माफी पाने के लिए बिलख रही आंखें हैं। दरअसल 78 साल के सूरत सिंह तकरीबन 60 साल बाद अपने घर लौटे हैं।
सूरत सिंह 18 साल की उम्र में घर छोड़कर चले गए थे। अब कोरोना काल में उन्होंने घर वापसी की है। उत्तरकाशी के जेस्तवाड़ी के रहने वाले सूरत सिंह अभी तक हिमाचल में थे। वह हिमाचल में सेब के बगानों में काम किया करते थे। कोरोना की वजह से कामकाज ठप हुआ तो सूरत सिंह ने भी अपने गांव वापस आने की अर्जी दे दी। लेकिन सूरत सिंह जब घर लौटे तो उनके परिवार ने उनके लिए दरवाजे बंद कर दिए। और ऐसा करने के लिए परिवार के पास भी काफी बड़ी वजह है।
आखिर क्यों किए दरवाजे बंद?
हुआ कुछ यूं था कि जब सूरत सिंह घर छोड़कर चले गए थे। तब वह महज 18 साल के थे और उनकी पत्नी 16 साल की। इस दौरान उनके बच्चे भी हो चुके थे। इन 60 सालों के दौरान परिवार ने उन्हें काफी खोजने की कोशिश की। पता चला कि वो हिमाचल में हैं। परिवार ने गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई। सूरत सिंह से अपील की कि वो वापस घर आ जाएं। परिवार की इन मिन्नतों का उन पर कोई असर नहीं हुआ।
अब जब सूरत अपने गांव वापस लौटे हैं तो उनकी पत्नी का कहना है कि अब उनका सूरत सिंह से कोई वास्ता नहीं है। उनका ये गुस्सा जायज भी है क्योंकि इतने सालों तक उस महिला ने अपने बच्चों को अकेले पाला बिना किसी सहारे के।
सूरत सिंह को उम्मीद है कि उन्हें अपने घर में आसरा मिलेगा। क्वारंटीन सेंटर में रहने के दौरान वो सिर्फ दीवारों को निहारते रहे। उनकी आंखें जैसी अपनी पत्नी से कहना चाहती हों कि गलती हो गई। मुझे माफ कर दे। वो किसी से ज्यादा बात नहीं करते। शायद जो गलतियां उन्होंने की हैं, उनका अब उन्हें पछतावा हो रहा है।
इस आर्टिकल को लिखने तक हमारे पास उनके अपने घरवालों के साथ होने की जानकारी नहीं है। लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि उनकी पत्नी, जिनका गुस्सा जायज है। जिनकी नाराजगी भी मायने रखती है। उन्हें सहारा दे दें। उन्हें माफ कर दें।
एक चीज सूरत सिंह ने जरूर महसूस की होगी कि उन्होंने जिंदगी के इतने अहम साल अपने परिवार, अपने बच्चों के बिना गुजारकर बरबाद कर दिए हैं।